गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में


“गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले”


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इस शायरी का मतलब है:

इस शायरी का मतलब है कि असली योद्धा ही युद्ध के मैदान में गिरते हैं, क्योंकि वे संघर्ष कर रहे होते हैं। लेकिन वह बच्चा क्या गिरेगा जो अभी घुटनों के बल चल रहा है। यह शायरी यह बताती है कि संघर्ष और कठिनाइयों का सामना केवल वही लोग करते हैं जो वास्तव में मैदान में उतरते हैं और चुनौतियों का सामना करते हैं। असली बहादुरी और परिपक्वता का प्रतीक वही लोग बनते हैं जो अपने प्रयासों में कभी हार नहीं मानते।

 

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